मनीष त्यागी
श्री मनीष त्यागी का जन्म 1978 में नई दिल्ली में हुआ। मनीष त्यागी ने 1998 में दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की तथा 2001 में दिल्ली विश्वविद्यालय से ही विधि स्नातक की उपाधि प्राप्त कर अधिवक्ता बने।
अपने छात्र जीवन में मनीष त्यागी हिंदी साहित्य से जुड़े रहे तथा महाविद्यालय में हिंदी साहित्य सभा के सचिव पद पर भी रहे। जहाँ इन्होने संस्कृत राष्ट्र कवि, महान व्यक्तित्व, पदम् श्री श्री रमाकांत शुक्ल के सान्निध्य में साहित्य साधना की। इनका विवाह श्रीमती हिरनमई से हुआ तथा इनके परिवार में एक पुत्र और एक पुत्री हैं।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी मनीष त्यागी कवि हृदय होने के साथ-साथ विविध कार्यों में पारंगत हैं तथा अपनी ला-फर्म MHA Legal का कार्यभार संभालते हैं। इसके अतिरिक्त मनीष त्यागी अपनी संस्था MHA संकल्प फाउंडेशन के द्वारा समाज सेवा तथा श्री हिंदू धर्म वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन के द्वारा सनातक धर्म के प्रचार कार्यों में भी अपना योगदान देते है।
श्री मनीष त्यागी ने सत्तर उपनिषदों, राम चरित मानस, श्रीमद भागवत गीता समेत १०० से अधिक पुस्तकों का सरलार्थ किया है। जो श्री हिंदू धर्म वैदिक एजुकेशन फाउंडेशन की वेबसाइट www.shdvef.com पर उपलब्ध हैं ।
श्री मनीष त्यागी तीन पुस्तकों के लेखक / सह लेखक हैं। आपका “क्या कहा मैं?” बहुप्रशंसित काव्य संग्रह, “यत्र तत्र सर्वत्र” समसामयिक विषयों पर क्रांतिकारी लेखों का अद्भुत संकलन तथा ‘ सफलता का पथ’ जीवन में सफलता प्राप्त करने के घटकों / मंत्रो का संकलन है।
वैसे तो मैंने विविध विषयों पर कविताएँ लिखीं हैं परन्तु मेरी कविताओं में राजनीतिक व्यंग्य की अधिकता है
इस पुस्तक में आप वह उपाय, वह मन्त्र, वह कारण जान पाएंगे जिसको अपने जीवन में अवतरित कर आप अँधेरे को चीरते हुए, विघ्नों को पार करते हुए अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हो सकेंगे। विजयश्री दासी बन कर आपकी सेवा करेगी और सफलता आपके चरणों मे लोट लगाएगी। जीवन प्रबंधन है, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह जीवन स्वयं के विकास में, दूसरों को प्रशिक्षित
इस पुस्तक में आप वह उपाय, वह मन्त्र, वह कारण जान पाएंगे जिसको अपने जीवन में अवतरित कर आप अँधेरे को चीरते हुए, विघ्नों को पार करते हुए अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हो सकेंगे। विजयश्री दासी बन कर आपकी सेवा करेगी और सफलता आपके चरणों मे लोट लगाएगी। जीवन प्रबंधन है, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह जीवन स्वयं के विकास में, दूसरों को प्रशिक्षित करने में, किसी राज्य या उद्यम, या कंपनी के प्रबंधन में इस्तेमाल होता है। प्रबंधन हमेशा लक्ष्य निर्धारण पर आधारित होता है, जिसका मुख्य उद्देश्य है सफलता प्राप्त करना।
'यत्र-तत्र–सर्वत्र' पुस्तक विविध विषयों पर क्रांतिकारी लेखों का संग्रह है, जो हमें यह सोचने समझने पर मजबूर करता है की हमारी सभ्यता कहाँ जा रही हैं तथा क्या हम स्वयं इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं। ये विषय भी वहुआयामी हैं और विश्लेषण भी ब हुआयामी है। बहुआयामी कहने का अर्थ है कि उन्होंने अपने विचारों को किसी एक बिन्दु पर केंद्रित नहीं किया है
'यत्र-तत्र–सर्वत्र' पुस्तक विविध विषयों पर क्रांतिकारी लेखों का संग्रह है, जो हमें यह सोचने समझने पर मजबूर करता है की हमारी सभ्यता कहाँ जा रही हैं तथा क्या हम स्वयं इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं। ये विषय भी वहुआयामी हैं और विश्लेषण भी ब हुआयामी है। बहुआयामी कहने का अर्थ है कि उन्होंने अपने विचारों को किसी एक बिन्दु पर केंद्रित नहीं किया है बल्कि कोशिश की है कि विषय को उसकी समग्रता में समझा जाए। इसके लिए उन्होंने विशुद्ध वैचारिकता को अपनी कसौटी बनाया है और पूर्वाग्रहों को परे रख दिया है। इस दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि सहजानन्द जी की विषय विवेचना निष्पक्ष भी और बहुआयामी भी है तथा अपनी सार्थकता का बोध कराती है। विषय को वे पर्त-दर-पर्त खोलते चले जाते हैं। कुछ दुराग्रही मतवादियों को छोड़कर वे अपने किसी पाठक के लिए अपने विचारों से असहमत होने का कोई द्वार नहीं खोलते। उनकी भाषा में साफगोई है। साफगोई को हर हालत में लेखन की अनिवार्य शर्त माना जाना चाहिए। लेकिन इस कला में पारंगत होने के लिए एक विशिष्ट साधना से गुजरना होता है। Give customers a reason to do business with you.
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